न जग भावै न पिय मिले
न जग भावै न पिय मिले कौन ठौर सखी जाऊँ
कौन विध राखूँ हिय अपनो कौन सौं मुख से गाऊँ
बिरह की मार अति गाढ़ी हाय रोय रोय ही रह जाऊँ
कौन घड़ी नेह लगाई बाँवरी बैठी सोच लगाऊँ
न होतौ कोऊ ज्ञान प्रेम को किस विध प्रीतम पाऊँ
हाय बाँवरी भोर साँझ कौ पिय पिय अकुलाऊँ
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