इक फूल बनूँ

इक फूल बनूँ तेरी बगिया का नहीं कमी तेरे अपनाने में
सारे जग को भूल मैं आ जाऊँ मेरी श्यामा तेरे बरसाने में

उस थाल का पुष्प बनूँ श्यामा जिससे तेरी पूजा हो
मेरा जीवन मेरी निधि तुम ही बस और न कोई दूजा हो
हो जाऊँ समर्पित चरणों में सेवा हो चरण सजाने में
इक फूल बनूँ........

उस हार का मैं इक फूल बनूँ जो बने श्रृंगार तेरा प्यारी
जन्नत से भी प्यारा हमको लगे यह दरबार तेरा प्यारी
बन जाऊँ मैं श्रृंगार तेरा लग जाऊँ तुम्हें सजाने में
इक फूल बनूँ.......

नहीं इतनी मेरी हस्ती श्यामा जो नाम भी तेरा मैं गाऊँ
कोई पुण्य न जप तप मेरा है किस विधि दरस तेरा पाऊँ
है पतित पावन नाम तेरा सुन रखा है इस जमाने में
इक फूल बनूँ......

बस आस यही श्यामा मेरी इस निर्धन को तुम अपनाना
भूल जाऊँ तुम्हें नादान हूँ मैं श्यामा तुम न कभी भुलाना
बिगड़ी सबकी बनाती हो तुम क्यों देर मेरी भी बनाने में
इक फूल बनूँ तेरी बगिया का नहीं कमी तेरे अपनाने में
सारे जग को भूल मैं आ जाऊँ मेरी श्यामा तेरे बरसाने में

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