चाव प्रेम को

जो होतौ कोऊ चाव प्रेम कौ टेरत टेरत जाती।
षड रस अति नीकौ लागै क्षणहुँ नाँहिं सकुचाती।।
लाज ना आवै मूढा बाँवरी मुख कैसो दिखलाती।
हा हा करत कबहुँ अकुलाय बिरथा जन्म गमाती।।
जो हौतौ हिय प्रेम उपज्यौ साँचो पीरा नाय समाती।
बाँवरी मग्न फिरै जगत वीथिन माँहिं नेकहुँ नाय लजाती।।

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