गाढ़ विषय रस

विषय रस ऐसो गाढ़ होय छूटे नाय छुड़ाय
कौन हरि बिन पकरै नैया पुनि पुनि भव बह जाय
खावै रोग जगत को ऐसो हिय भीतर अकुलाय
बीत गयो हाय जन्म बहुतेरे हरि न कबहुँ ध्याय
क्षण क्षण फिसलै बालू कणी सम समय निकलतो जाय
सीस न धरयौ हरि चरणन माँहिं ऐसो मूढ़ सुभाय
कोऊ बनावै बिगरी तेरी बाँवरी बनी बिगारत जाय
पुनः चौरासी फेर पड़े री मूढ़े दुर्लभ जन्म गमाय

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