श्रीनिकुंज पुष्प सेवा

निताई गौर हरिबोल

*श्रीनिकुंज पुष्प सेवा*

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श्रीनित्य निकुञ्ज श्रीयुगल की प्रेम भूमि है, जहाँ हमारे प्राण प्रियतम श्रीश्यामाश्याम सदा आह्लादित, तरंगायित, उन्मादित, प्रेममयी, सेवामयी, श्रृंगारमयी क्रीड़ा विलास करते हैं। श्रीनिकुंज का एक एक रज अणु उनके प्रेम रस से सिंचित है, आह्लादित है। प्रत्येक खग ,मृग, लता , वल्लरी, पुष्प अपने प्रिय युगल की सेवा हेतु लालायित रहता है। प्रेम भूमि का प्रत्येक रज अणु इस प्रेम मदिरा से छका हुआ तथा युगल सेवा सुख को आतुर है। इस भूमि का एक एक रज कण ऐसा पवित्र है कि स्वयं देव , यक्ष , ब्रह्मादिक देवता भी इसके स्पर्श को लालायित रहते हैं कि कौन सा सौभाग्यशाली क्षण हो जब इस प्रेम भूमि के एक रज कण को प्रणाम कर इसे अपने मस्तक पर रख सकें।कौन से शब्द हों जिससे इसका गुणगान हो सके। कितनी जिव्हा हो कि गुणगान हो सके। यह सब सामर्थ्य से सम्भव नहीं। किसी योग्यता से सम्भव नहीं। टूटा फूटा सा एक शब्द भी जो लिखा गया , वह कृपा उनकी। एक एक नाम जो जिव्हा पर नृत्य करे , एक एक अश्रु जो उनकी स्मृति में बह जाए , अहैतुकी कृपा उनकी। अथाह प्रेम समुद्र की किंचित मात्र एक बूंद भी मिल जावै , यह केवल केवल कृपा उनकी।
   
   इस पवित्र भूमि का एक एक कण प्रेममयी है। प्रेम से सिंचित वृक्ष लता वल्लरियों में प्रेम प्रसून ही पल्लवित होते हैं। ऐसा प्रेम पुष्प जो अपने युगल की सौरभ से सुरभित है, उनकी सेवा के लिए प्रफुल्लित है।आहा!!कितना भाग्यशाली यह पुष्प जो युगल की सेवा लालसा हो चुका है। कभी अपने प्यारे प्यारी की पुष्पमाला, कभी श्रृंगार , कभी पुष्प शैया कभी तो उनके चरणों मे ही बिखर बिखर जाने को उन्मादित हुआ जाता है। श्रीयुगल का सेवा सुख हो जाना ही जिसका जीवन है।

   यह भाव भी श्रीयुगल कृपा , श्रीगुरु देव कृपा के बिना लिखना सम्भव नहीं। श्रीयुगल का सेवामयी पुष्प अपने श्रीगुरुदेव के चरणों का सेवामई पुष्प ही है।जिनके चरणों की धूलि को मस्तक पर रख इस भाव सेवा का अधिकार प्राप्त होता है। श्रीगुरुदेव जी के चरणों मे समर्पित यह भाव।

----------*गुरु वन्दना*--------
मानुष तन धारि कै जो करै न गुरु पद- कंज ध्यान ।
वृथा जन्म ताकौ भयौ सो मानुस पशु समान।।

बन्दौ गुरु पद पंकज कीजौ सदा आधार।
जिन्हें सेवत नित्य हृदय माहिं भव सों होय उद्धार।।

श्रीगुरु पद नख की महिमा न शब्द बरण करै कोय।
आपहुँ गुरु समर्थ सदा लिखे शब्द माहिं जोय।।

नित बलिहारी जाइए श्री सद्गुरु के चरणार।
हरि गुरु भेद न राखिये यहि ज्ञान हिय माँहिं धार।।

गुरु नाम सबते बड़ा नित सेवौ पद मकरंद।
गुरु आश्रय में सदा मिलै परम आनंद।।

नाश करै भव तिमिर कौ देवै साँचो ज्ञान।
श्री सद्गुरु पद रेणु सीस धरिये तिलक समान।।

भाव सौं कीजौ प्रातः नमन अर्पित सब अभिमान।
श्री गुरु बचन को आपने हिय धरै वेद समान ।।

सकल अभिमान त्याग कै जो भजन करै गुरु रीत।
साँची कृपा तबहुँ भये जो लागै गुरु चरणी प्रीत।।

रे मन भज गुरु पद पंकज सदा भृमर बनै रहो नित।
गुरु कथन माँहिं रमण करै नित आपनो चित्त।।

कोऊ शब्द न करि सके श्री गुरु महिमा कौ गान।
नित्य प्रीति बढ़ै गुरु चरण सौं राखूँ याहि अभिमान।।

गुरु वचन कौ हिय धर जो करै बचन अनुसार।
गुरु रूप ही प्रगट भ्यै हरि आपहुँ साकार।।

  जिनकी कृपा बल से यह भाव बेलि सिंचित हो सके।

क्रमशः

जय जय श्रीवृंदविपिन
निताई गौर हरिबोल

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