जल रहे हैं हम
जल रहे हैं हम तेरे इश्क़ की आग में प्यारे
बहती है धारा अश्कों की बुझते नहीं अंगारे
चलो और सुलगने दो जरा मज़ा इश्क़ का जलने में
कुछ आंखों से बहने में है कुछ दिल से पिघलने में
कैसी यह प्यास है की पीकर भी प्यासे हम
डूबते हैं समन्दर में फिर भी लगता है कम कम
कितना गहरा है इश्क़ तेरा चल तू ही बता दे
मेरी क्या औकात है साहिब तू जितना जता दे
मुझमे होकर भी मैं हूँ या तुम हो ख़बर नहीं
पीने की बस आदत है बाक़ी कोई फिक्र नहीं
तेरी मोहबतों के जाम कभी कभी यूँ छलकते हैं
उठते हैं तूफान अश्कों के तो कभी अरमान मचलते हैं
मुझको मेरे वजूद से आज गुम कर दो साहिब यूँ
तुम ही तुम रह जाओ मैं ढूंढूं तुम्हें कहीं क्यूँ
Comments
Post a Comment