कौन विधि सेवा सुमिरन
हरिहौं कौन विधि सेवा सुमिरण पाऊँ।
जगत की विष्ठा मोहे घेरे किस विध नाथ नसाऊँ।।
हाथ उठाय नाथ तोहे टेरुं खड़ी खड़ी चिल्लाऊँ।
हाय हाय निकसै मुख सौं नयनन नीर झराऊँ।।
तुम बिन कौन होवै मेरौ नाथ कौन पास मैं जाऊँ।
बाँवरी की गति मति तुमहीं नाथा तुम्ही सौं आस लगाऊँ।।
Comments
Post a Comment