हरिहौं कब उपजै हिय पीर
हरिहौं कबहुँ हिय उपजै प्रेम की पीर
झूठी बात बनाई बाँवरी सुखयो नैनन नीर
कबहुँ होतौ प्रेम जो साँचो हिय सरसातो भारी
नाथ नाथ जिव्हा सौं भजती अबहुँ बिरथा जन्म बिगारी
कौन विधि भजन की रीत बनै कौन विधि नामरस आवै
मूढा बाँवरी जाग भव निद्रा सौं क्षण क्षण बिरथा जावै
Comments
Post a Comment