गहरा सा सन्नाटा
इक गहरा सा सन्नाटा है दूर तलक तन्हाई
दिल जार जार रोता है कटती नहीं जुदाई
मन्जर न हम भुला सके तुझसे बिछड़ने का अब तलक
थे तेरे आगोश में इक पल अब पल पल की रुसवाई
जाना ही था तो क्यों छोड़ा इन बेकरार सांसों को
मोहबत के खुदा तूने अच्छी मोहबत है निभाई
हम तो जी लेंगे दर्द यह पीते पीते उम्र भर
आवाज़ सुनो दिल की नहीं क्या देती न सुनाई
बस एक पल की जिंदगी देकर तुम चले गए
जिंदा हैं ऐसी जिंदगी कि मौत क्यों न आई
जलने दो सुलगने दो यह आग है साहिब इश्क़ की
बढ़ती ही जाती बेखुदी जितनी यह सुलगाई
जल जल कर ख़ाक हो जाएंगे हम इश्क़ की
महबूब तेरे इश्क़ की न होने देंगे कोई रुसवाई
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