लौटूं जगत की कीच

हरिहौं लौटूँ जगत की कीच।

कूकरी सम पाऊँ मैं विष्ठा, पुनि पुनि जगत के बीच।।

भजनहीन पतित अधम बाँवरी, जन्म जन्म को नीच।

किस विध प्रेम हिय उपजै, किस विध होवै सींच।।

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