हरिहौं कब भोगन ते
हरिहौं कबहुँ भोगन ते छुट जाऊँ
भव समुद्र देवै कबहुँ पीड़ा नाथ नाथ चिल्लाऊँ
विषय रस अति नीको लागै क्षण क्षण डूबत जाऊँ
कबहुँ पाषण हिय मेरौ पिघलै नैनन नीर झराऊँ
बाँवरी तू जन्मन की खोटी कबहुँ हरि रस पाऊँ
जन्म बिगारै दई कई आपने नेकहुँ नाय लजाऊँ
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