हरिहौं भोग रस
हरिहौं भोग रस होय अति गाढ़ै
भूली फिरै बाँवरी बात भजन की जगति विष्ठा बाढ़ै
रैन दिवस होय रहै लुण्ठित भव रोग हिय पसारै
कबहुँ न कीन्हीं संगति साध की हरि लगै न प्यारै
हा हा करत अबहुँ बाँवरी जावत कौन द्वारै
अबहुँ आय गिरी मैं नाथा दियौ न अधम बिसारै
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