हम भव रोगी भारी
हरिहौं हम भव रोगी भारी।
भजन छांड जग वीथिन डोलूँ अपनो नाथ बिसारी।।
पाथर हिय न पिघलै मेरौ पाथर भई मैं सारी।
न हिय लगै चटपटी कोऊ नाथा खाऊँ जगत की गारी।।
हाय नाथ कौन विध होय छुटकारा नचावै जगत मदारी।
पकरौ नाथ हाथ अबहुँ मेरौ भव सौं देयो निकारी।।
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