पत्र पुष्प

कोऊ पत्र पुष्प जो होती हरि चरणन चढ़ जाती
मलिन पतिन दास माया को जगति फिरै लुभाती
जो हिय होतौ अंकुर प्रेम को नेह बेलि चढ़ जाय
सुखो हिय होय काठ सम नवनीत कैसो ठहराय
बाँवरी कैसो उमगै प्रेम हिय कैसो तेरौ सुभाय
लाज न आवै अपने करमन ते बिरथा जन्म गमाय

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