माया मोहै नचाय

हरिहौं माया काहे नचाय।
तुम प्रतिपालक नाथा मेरौ लीजौ आन बचाय।।
हाथ राखूँ सुमिरणी जबहुँ हिय इत उत धाय।
पकरि पकरि पुनः पुनः लाऊँ पुनः पुनः जगत धसाय।।
हाय नाथा मेरौ हिय चँचल भजन नाँहिं बन पाय।
पीर उठे तबहुँ हिय भारी बाँवरी रहै अकुलाय।।

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