हरिहौं
[19/04, 16:42] भज गौरांग: हरिहौं कबहुँ भोगन ते छुट जाऊँ
भव समुद्र देवै कबहुँ पीड़ा नाथ नाथ चिल्लाऊँ
विषय रस अति नीको लागै क्षण क्षण डूबत जाऊँ
कबहुँ पाषण हिय मेरौ पिघलै नैनन नीर झराऊँ
बाँवरी तू जन्मन की खोटी कबहुँ हरि रस पाऊँ
जन्म बिगारै दई कई आपने नेकहुँ नाय लजाऊँ
[19/04, 16:47] भज गौरांग: हरिहौं साँची देयो हिय पीर
पिघलै किस भाँति पाथर हिय कैसे भयै अधीर
किस विध हरिरस हिय उमगावै होऊँ अति बलहीन
झूठो स्वांग बनाये बाँवरी बाहरी हिय भयो न दीन
कौन विधि होय तेरौ छुटकारा भजन हीन होय भारी
भूली फिरै साँचो घर आपनो जन्म जन्म बिगारी
[19/04, 16:53] भज गौरांग: हरिहौं कबहुँ हिय जलै ज्यूँ काठ
षडरस अबहुँ बड़ौ सुहाय भावै जगति कौ ठाठ
भोगन रस कौ लोभी बाँवरी बनै कौन विधि बात
अवगुण की होय खान बाँवरी क्षणहुँ नाय सकुचात
कौन विधि भजन लौभ हिय आवै भूलै जगति को साथ
नाथ तिहारौ शरण परि न बाँवरी पापन सौं सकुचात
[19/04, 16:59] भज गौरांग: हरिहौं भोग रस होय अति गाढ़ै
भूली फिरै बाँवरी बात भजन की जगति विष्ठा बाढ़ै
रैन दिवस होय रहै लुण्ठित भव रोग हिय पसारै
कबहुँ न कीन्हीं संगति साध की हरि लगै न प्यारै
हा हा करत अबहुँ बाँवरी जावत कौन द्वारै
अबहुँ आय गिरी मैं नाथा दियौ न अधम बिसारै
[19/04, 22:18] भज गौरांग: हरिहौं कबहुँ हिय उपजै प्रेम की पीर
झूठी बात बनाई बाँवरी सुखयो नैनन नीर
कबहुँ होतौ प्रेम जो साँचो हिय सरसातो भारी
नाथ नाथ जिव्हा सौं भजती अबहुँ बिरथा जन्म बिगारी
कौन विधि भजन की रीत बनै कौन विधि नामरस आवै
मूढा बाँवरी जाग भव निद्रा सौं क्षण क्षण बिरथा जावै
[19/04, 22:23] भज गौरांग: हरिहौं हम झूठो भारी
कौन विधि आय मिलो नाथा झूठ पुकार पुकारी
जो होतौ प्रेम कछु साँचो हिय पीरा न जाती
बाँवरी फिरै जग वीथिन डोलत नेकहुँ नाय लजाती
भजन की चिंता न व्यापी कबहुँ भजन को नाँहिं रोवै
मूढ़ अधम पातकी पामर बाँवरी बिरथा स्वासा खोवै
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