मुझसे ही खेल

मुझसे ही खेल मेरे इम्तेहान लेते हो
दिल तो है तुम्हारा ही क्यों जान लेते हो

मानती हूँ नहीं आता इल्म इश्क़ का मुझे
फिर भी तुम इस दिल का मकान लेते हो
मुझसे ही खेल......

खेल तो तुम्हारा है सब मैं तो इक खिलाड़ी हूँ
तुम भी कैसे कैसे खिलाड़ी नादान लेते हो
मुझसे ही खेल......

हम जीते या हारे है बस तुम्हारे ही
दिल की हर धड़कन को पहचान लेते ही
मुझसे ही खेल......

चलो मिटा दो सब वजूद जो मुझमे मेरा बाक़ी
क्यों मेरी ज़िंदगी का बाक़ी सामान लेते हो
मुझसे ही खेल......

मुझको होना है फनाह साहिब तुम में इस कदर
जानती हूँ सब बातें दिल की मान लेते हो
मुझसे ही खेल......

मेरी रुसवाई का अब मुझे गम नहीं कोई
रोक मेरी ओर आता हर तूफान लेते हो
मुझसे ही खेल......

जैसे भी खेलो साहिब मैं खिलौना हूँ तेरा
क्यों मुझमे मेरे होने के निशान लेते हो
मुझसे ही खेल.....

है इश्क़ तेरा जो मेरी रूह तलक नीलाम हुई
सारी हसरतें मेरे सारे अरमान लेते हो
मुझसे ही खेलकर मेरे इम्तिहान लेते हो
दिल तो है तुम्हारा ही क्यों जान लेते हो

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