हरिनाम
हरिनाम ही औषध सकल दुखन को हरिरस पी मनवा
हरि गुरु चरण नेह सदा लागे ऐसो जीवन जी मनवा
हरिनाम ही सार सुखन को हरि भज तबहुँ सुख पावै
हरि कृपा सों हरि भजन मिले हरि नाम रूप धर आवै
कलियुग केवल नाम आधारा नाम भजन को विस्तारा
नाम भजै पतित भी कोऊ भव सिंधु सों होय उतारा
छांड देय सब ज्ञान कर्म यज्ञ हरिनाम से उद्धार होय
नाम की नोका चढ़े जो प्राणी भव सागर सों पार होय
नाम को धन सम्भार रे भाई कोटिन कोटि नित राख्यो जोरी
नाम रूप धर हरि आप ही आयो कीजौ न संशय मति थोरी
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