मत ढूँढो

यहां दर्द ओ गम की बस्ती है खुशियो की परछाइयाँ मत ढूँढो
हैं आहें चीखें तन्हाईयाँ बजती शहनाइयां मत ढूँढो

अश्कों का सावन बरस रहा दिल दर्द में ऐसा डूब गया
मौसम ए बहारा गायब है खिलती गुलजारें मत ढूँढो

कुछ जला कुछ बाक़ी है दिल मेरे का जो सामां है
तुम आशिक हंसते चेहरे के, यहां अजब नज़ारे मत ढूँढो

न मौसिकी न ग़ज़ल कोई दर्द की ही नज़्में बजती हैं
जिसका उजड़ा हुआ चमन रहे ,वहाँ झंकारें मत ढूँढो

मत छेड़ो हम आशिक ठहरे यह दर्द ही दौलत अपनी है
जलना तिल तिल सिसकना ही तुम मौज बहारें मत ढूँढो

अब तन्हा ही मुझको रहना मैं और परछाई खेलेंगे
है बन्द इस दिल के दरवाज़े आसमाँ के सितारे मत ढूँढो

है दर्द ही दर्द पड़ा यहां मुझसे न दर्द मांगों तोहफा
डूबना है मुझे समंदर में तुम खड़े किनारे मत ढूँढो

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून