ठीक नहीं

कोई आज मेरे दिल के दरवाज़े पर दस्तक न दे
दिलजलों को तनहा अब छोड़ो अब इसे बुलाना ठीक नहीं

दर्द की नज़्में ही सुनोगे तुम मेरे कमरे में बजती सी
अब गीत खुशी के तुम गाओ इस दिल को सुनाना ठीक नहीं

हम सजे हैं दर्द और अश्कों से ये ही अब सजना अपना
बदरंग बाकी सब रँग हुए कोई रँग लगाना ठीक नहीं

पड़े रहने दो खामोश यूँ ही मुझको न पुकारो रुक जाओ
बिखरे से पड़े हैं मुद्दत से यूँ झट से उठाना ठीक नहीं

भीतर ही भीतर सुनते हैं अपनी चीखें और रुसवाईयाँ
लबों को यूं सिले बैठे हैं अब तुमको सुनाना ठीक नहीं

लौट जाओ इस कमरे से यहाँ कोई सुकूँ न पाओगे
यहाँ मन्जर दर्द और इश्क़ के यहां आना जाना ठीक नहीं

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून