जाने कब

जाने दर्द ओ गम की कब काली ये रात जाएगी
बरसते बरसते थकी यह आँखें कब बरसात जाएगी

राह इश्क़ की बड़ी मुश्किल आसां कोई खेल नहीं
काँटो से भरी हुई हैं रहें जिन पर बारात जाएगी
जाने दर्द.......

आशिक का तो काम है मिटना कोई निशां न बाकी हो
मौत रुसवाइयों की लेकर साथ सौगात जाएगी
जाने दर्द......

न तो मिली मंजिल इश्क़ की न दुनिया के लिए रहे
मेरे दिल की लगी है ऐसी रँग कभी तो लाएगी
जाने दर्द ........

दिल की लगी बनी दिल्लगी दर्द बड़ा ये देती है
रूह तलक भरे हैं छाले क्या किसको दर्द बताएगी
जाने दर्द ओ गम की कब काली रात ये जाएगी
बरसते बरसते थकी यह आँखें कब बरसात जाएगी

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून