हे हरि ३२

बुद्धिहीन बलहीन करो हे हरि अपना बल लगाऊँ न
जिन वीथन न नाम तिहारा कबहुँ एक पग जाऊँ न
हरि हरि सदा उच्चारें जिव्हा क्षण भर भी बिसराऊँ न
स्मरण छूटे तड़पत रहूँ मीन सों जल सों बाहर जाऊँ न
ऐसी तृषा जगावो हे हरि नाम बिन समय गमाऊँ न
नेह बढ़े अति गुरु चरणन सों जगत सों प्रीत लगाऊँ

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