महाप्रभु चैतन्य देव

महाप्रभु श्रीकृष्णचैतन्य

नदिया में चन्द्रग्रहण के उत्सव में एक और चन्द्र का उदय हुआ जिस समय प्रत्येक जिव्हा हरि हरि नाम का उच्चारण कर रही थी। यही नदियाबिहारी कलियुग के पतितपावन अवतार विशम्भर नाम से प्रसिद्ध हुए। विशम्भर अर्थात विश्व का पोषण करने वाला। कलियुग कीर्तन का युग है , नाम संकीर्तन से समस्त मानवता का पोषण करने वाले महकरुणाकर श्रीकृष्ण चैतन्य ने समस्त कर्मो , साधनों , तीर्थों का फल श्रीकृष्ण प्रेम ही बताया।पिता श्रीजगन्नाथ मिश्र तथा माता शचीदेवी के हृदय आलोक गौरवर्ण होने के कारण गौरांग भी पुकारे जाते। निमाई पंडित के नाम से भी इन्होंने अपनी विद्या विलास का प्राकट्य किया , परन्तु समस्त विद्याओं का फल , समस्त विद्याओं का उद्देश्य श्रीकृष्ण रति में ही परिवर्तित हुआ।यह गौरांग कोई और नहीं स्वयम श्रीकृष्ण राधाभाव तथा राधकांति को धारण किये श्रीराधा के परमपावन प्रेम के आस्वादन हेतु तथा कलियुग के त्रस्त जीवों के त्रिताप निवारण हेतु ही गौरचन्द्र रूप में उदय हुए हैं। स्वयं श्रीकृष्ण हैं परंतु राधा भाव मे भावित होने से कृष्ण कृष्ण ही उच्चार रहे है तथा प्रेमोन्मत हो नृत्य कर रहे हैं।

  श्रीकृष्णचैतन्य नाम इनका सन्यास का नाम हुआ। समस्त जीवों के उद्धार हेतु महामन्त्र का प्रचार तथा मञ्जरी भाव देकर कलियुग के जीवों के त्रिताप को हरने के लिए संकीर्तन को क्लिओषध अर्थात कलियुग से त्रस्त जीवों में प्रेम के संचार की मूल औषधि प्रदान की।विष्णुप्रिया के प्रेमधन श्रीचैतन्य देव ने कलियुग के जीवों को कृष्ण प्रेमामृत का आस्वादन श्रीकृष्ण नाम संकीर्तन के रूप में करवाया। ऐसे करुणासिन्धु , महावदान्य , भक्तवत्सल गौरहरि की जय हो !

राधाभाव कांति धारी
श्रीकृष्ण चैतन्य
प्रकटे नदियाबिहारी
श्रीकृष्ण चैतन्य
गौरांग पीत पट
श्रीकृष्ण चैतन्य
कृष्णप्रेमोन्मत्त
श्रीकृष्ण चैतन्य
कृष्ण कृष्ण उच्चारें
श्रीकृष्ण चैतन्य
सचिसुत मतवारे
श्रीकृष्ण चैतन्य
भक्ति का उन्माद
श्रीकृष्ण चैतन्य
प्रेम का आह्लाद
श्रीकृष्ण चैतन्य
पतितपावन करें
श्रीकृष्ण चैतन्य
मुख कृष्णनाम धरें
श्रीकृष्ण चैतन्य
मञ्जरीभाव प्रदाता
श्रीकृष्ण चैतन्य
कलयुग त्रिताप त्राता
श्रीकृष्ण चैतन्य
महामन्त्र प्रदाता
श्रीकृष्ण चैतन्य
निताई अनुज भ्राता
श्रीकृष्ण चैतन्य
नदिया के रत्न
श्रीकृष्ण चैतन्य
विष्णुप्रिया धन
श्रीकृष्ण चैतन्य
त्रिदण्ड धारी
श्रीकृष्ण चैतन्य
कलिजीव उद्धारी
श्रीकृष्ण चैतन्य
गौर गौरांग नाम जो जन लहे उच्चार
सकल पाप भस्म होवै पावै प्रेम सार
भज गौरांग भज गौरांग गौरांग निहार
महामन्त्र नित्य प्रति मुख राखो धार

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