प्रीत की बेलि३०
हरि जी मेरी प्रीत की बेलि बढ़ावो
खर पतवार उगत बहुतेरे नाम की राख रखावो
नाम की बाढ़ ढके उर ऐसो प्रेम रस उमगावो
कान सुने सतगुरु की बातां ऐसो नेह लगावो
ओर कोई ठौर नाँहिं मेरो सतगुरु चरण बैठावो
भेद न राखूँ हरि सद्गुरु माँहिं सगरे भेद मिटावो
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