बाहर भीतर

बाहर इक दिया जले भीतर इक दिल मेरा
बाहर रोशनी रही ,रहा भीतर सदा अंधेरा

कोई पूछे जलने से क्या रुशनाई नहीं होती
दिल जलता हो जब इश्क़ में कोई बधाई नहीं होती
यही दिल ने महसूस किया है यही कहे दिल मेरा
बाहर इक दिया .......

बाहर हैं माहौल जश्न के भीतर कोई जोश नहीं है
अखियाँ भर भर आती हैं दिल का कोई दोष नहीं है
आशिक क्या जाने कब रात हुई कब हुआ सवेरा
बाहर इक दिया .......

कैसे जश्न मनाए यह दिल जलना किस्मत लगती है
बाहर भीतर भेद बना क्यों किस्मत ऐसे ठगती है
कब तक तड़पे मन के पँछी ये तेरा नहीं बसेरा
बाहर इक दिया जले भीतर इक दिल मेरा
बाहर रोशनी रही , रहा भीतर सदा अंधेरा

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