मैं हूँ
मैं हूँ तो आईना भी बदसूरत सा हो चला है
महज तेरे जिक्र से ही इक अक्स नया आता है
कहाँ रुकता है इश्क़ तेरा ए मेरे दिल ए रहबर
आंखों से अश्क़ बनकर क्यों बहता चला जाता है
दर्दों में डूबने का आज जश्न रखा है दिल ने
देखते हैं कौन आशिक आकर जश्न मनाता है
माना कि है बहुत टेढ़ा सा राह ए इश्क़ मगर
आशिकों के दिल का जुनून ही बढ़ाता है
यूँ ही मुश्किल न होती गर राह ए वफ़ा सुनलो
इश्क़ में जलने के फिर मज़ा कौन पाता है
माना कि भाती हैं तन्हाईयाँ आशिकों को बस
खामोशियों में यार ही दिल मे गुनगुनाता है
कुछ और न देना साहिब देना आशिकी अपनी
तेरा नाम लेकर रोने में भी सुकून बड़ा आता है
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