अधूरी तमन्ना

कदमों में रहने की तमन्ना थी खाक बनकर
पर वजूद ही रहा काँटो सा जो चुभता रहे
अब इस वजूद के होने से भी दर्द है मुझे
काश मेरा खुदा मेरा वजूद ही फनाह करे

बेवफाई यूँ रग रग में दौड़ती ही रही
मुझको अपनी वफ़ा निभानी कभी न आई
क्यों न सुनी इस दिल से सदाएँ कोई
क्यों इस दिल तक कोई आवाज़ न आई

खुद ही शर्मसार हूँ अपने वजूद से अब
मुझमे मैं होकर भी लौटने की आरज़ू नहीं
गुम ही रहूँ अब यूँ दर्द पीते पीते
मुझे किसी भी आरज़ू की आरज़ू नहीं

हर एक लफ्ज़ अब जैसे चुभता सा मुझे
इनमें भी जाने किसी अक्स की तलाश ही रही

एक तमन्ना जो अधूरी सी रह गई
और एक नज़्म अधूरी सी रह गईं

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