16 से अंत तक

झूठो सो नेह कियो तोसे मोहन साँचो मेरी प्रीत नाँहिं
लोक लाज न मोसों छुट्यो उर अंतर तेरो प्रीत नाँहिं
मन भागे जगत सुखन के पाछे गाऊँ तेरो प्रेम गीत नाँहिं
भाई बन्धु सखा मोहे प्यारो लागे मोहन बनायो मीत नाँहिं
मान बड़ाई को चसको मोहे लाग्यो जानूँ कोऊ प्रेम रीत नाँहिं
हा हा नाथ अबहुँ सुधि लीजौ साँचो तोसों कोऊ मनमीत नाँहिं

१७

दगाबाज होऊँ दगा करूँ नित हरिनाम कबहुँ न गायो
विषयन सँग रह्यौ उरझयो विषयन माँहिं अति सुख पायो
देह कोऊ ही सम्बन्ध राख्यो देह सुखन को ही सार बनायो
हरिनाम न रसना सों गायो मन कामी विषय विकार समायो
जड़ता रह्यो दृढ जन्मन की ऐसो हरि प्रेम को स्वाद न भायो
हाय नाथ काटो मोरे भव बन्धन बाँवरी को जन्म व्यर्थ ही जायो

१८

अपनों सच नित छुपाऊँ जगत सों भक्त को बेस बनाय रहूँ
जिव्हा चाण्डालिनी हरि नाम बिन मेरो विषय रस लगाय रहूँ
चिंतन भजन नाँहिं प्यारो लागे मोहे कुकर होऊँ विष्ठा खाय रहूँ
मानव देह मिली अमोलक हरि भजन को क्षण क्षण व्यर्थ गवाय रहूँ
बाँवरी जन्म व्यर्थ गमायो नाम बिन कोऊ पीर नाँहिं मनाय रहूँ
पतित अधम कैसो पुकारूँ तोहे नाथ अपने पापन सों शरमाय रहूँ

१९

कीजौ छुटकारा मेरो भव बन्धन काटो हरि कौन सों मुख ते कहूँ
मलिन पतित अधम होऊँ जन्म सों कोऊ तुम बिनहुँ ठौर गहूँ
मो सम पातक नाय कोऊ जगत माँहिं पड्यो अबहुँ द्वार तेरे
पाप ताप सब काट्यो आपहुँ हरि करुणा बरसे चरण अपार तेरे
राख लेहो अपनी शरण अबहुँ मोहे नाँहिं अबहुँ बिसारो जी
झूठ ही कहूँ नाथ तुम सच मान लीजौ नाँहिं तुम सों कोऊ प्यारो जी
जानत हूँ तुम करुणा निधान होवो झूठ ही साँचो जानो जी
तेरी थी तेरी हूँ चाहे कहूँ झूठ मैं पर तुम ही अपनों मानो जी
झूठ कहूँ हरि झूठ जी जान्यो पतित जन्मन ते ही होऊँ मैं
तुम विमुख रहूँ नित नाथ मेरे व्यर्थ ही जीवन खोऊँ मैं
आपहुँ हाथ पकर लीजौ साहिब मो कुटिल को भव पार करो
जन्म जन्म की भूली भटकी नाथ जी कछु मेरा अबहुँ सुधार करो

२०

सद्गुरु मेरा दीन दयाला मैं नित नित बलिहारी
शरण में राख्यो हाथ पकरि मेरो कीजौ मेरी रखवारी
नाव कीजौ भव पार मेरी हरिनाम से पार उतारी
चरणन की रज सीस चढ़ाऊँ मैं दासी बनूँ तिहारी
महल टहलनी दीजौ मोहे सेवा करूँ प्यारे प्यारी
अबहुँ विलम्ब न कीजौ मेरे सद्गुरु विनती सुनो हमारी

२१

मैं अधम पतित सिरमौर मेरा साहिब दीन दयाला
आपहुँ करे मेरी रखवारी कृपा कोर ऐसो कृपाला
इत उत भटकन कीजौ शांत मेरी हरि नाम को दियो उजाला
द्रवित कीन्हों पाषाण उर मेरो तहाँ जली फिर प्रेम ज्वाला
कृपा निधान मैं बलि बलि जाऊँ मोहे भव बन्धन सों निकाला
नाम तेरो नित गावै ये रसना मेरो साहिब सुखमणी माला

२२

कृपा कोर ऐसो कृपा कीन्हीं मन हरि चरणन सों लागा
हरिनाम के मोती पिरोऊँ नित मेरो सद्गुरु दीजौ धागा
हरि हरि गावै रसना मेरी हिय अंतर ऐसो प्रेम रस पागा
नाम रस भीजै चुनर मेरी ऐसो हरि नाम मोहे रँग लागा
सद्गुरु अपने की बलिहारी जिन कीन्हों ऐसी प्रेम रँगाई
सद्गुरु के नित शीश नवाऊँ नित बाँवरी तेरी शोभा गाई

२३

हरि हरि रटे नित मेरी रसना नैनन बहे नित नीर
आन मिलो प्रियाप्रियतम प्यारे तोहे निरखुँ यमुना तीर
कबते बैठी मग जोवत रहूँ हिय होवै अति अधीर
तुम बिन युग्लवर किसे सुनाऊँ तुम जानो प्रेम पीर
बाँवरी दासी की लाज राखो करे विनय दोय करि जोरी
प्रीत की रीति तुम्हीं निभावो बाँवरी होय दासी तोरी

२४

ऐसी कृपा कीजौ कृपावत्सल नाम न क्षणहुँ बिसरे
नाम रस चाखै जिव्हा क्षण क्षण नाम कृपा ही उतरे
अवर न सुख कोऊ माँगू नाथ मेरे नाम भिक्षा मोहे दीजौ
कोटि जन्मन पतित होऊँ नाथ कोर कृपा की कीजौ
कोऊ न सुख जगत के चाहूँ मोहे चरणन माँहिं लीजौ
बाँवरी तेरो शरण गहे नाथा अबहुँ विलम्ब न कीजौ
हरि हरि हरि गावै मेरो रसना ऐसो नाम रँग रँगावो
निर्बल को बल तुम्हीं नाथा मोहे हाथ पकरि अपनावो

२५

दीन दयाला प्रभ कृपाला तुमसों कौन जगत माँहिं पाया
भव सागर माँहिं डोलत मेरो नैय्या आपहुँ पार लगाया
नाम रूपी डोरी ते बाँधत ही हरि मोहे आन बचाया
जन्मन की जड़ता मेरो नासी हरि नाम को चाव बढ़ाया
बलि बलि जाऊँ सद्गुरु तुमसों मेरो सगरो दोष बिसराया
मोसों कौन अधम सिरमौर जी कृपा कीन्हीं चरण बैठाया

२६

ऐसो पतित होऊँ जन्म ते नाथ मुख ते नाम न आयो
बलि बलि जाऊँ सद्गुरु अपने सों जिन अधमन को अपनायो
होऊँ बलहीन न जप तप मेरो नाथा मोहे प्रेम पंथ दिखायो
नित नित गुण गाऊँ तेरौ नाथा मेरो नाम को चाव बढ़ायो
तुमसों कौन उदार जगत माँहिं नाथा बाँवरी प्रेम धन पायो
तुम्हरी दया सों तुम्हरी कृपा सों तुम्हरो ही यश गायो

२७

मैं तो गौर चरणन की बलिहारी जिन कृपा कोर बरसाई
हाथ पकरि मोहे आन सम्भारयो मेरी देखी नहीं अधमाई
जन्म जन्म की जड़ता मेरी नाथा हरि नाम दियो छुड़वाई
बाँवरी तेरौ ही बल सों नाथा हरिनाम गुण नित गाई
भुजा उठावै हरि हरि बोले प्रेमधन लुटावे आप हरिराई
गौर हरि नित बलि बलि जाऊँ जिन प्रेम की ज्योति जलाई

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