हरिनाम न मीठा लागे

रे मनवा !
तोहे हरिनाम न मीठा लागे
हरि विमुख जीवन होय तेरौ बैठत रहे अभागे
रे मनवा !
तोहे हरिनाम न मीठा लागे

डोलत फिरत इत उत संसारा
कैसो होय तेरो जीवन उजियारा
कब रसना हरिनाम उच्चारें कब भव निद्रा त्यागे
रे मनवा !
तोहे हरिनाम न मीठा लागे

हरिनाम ही सार जीवन का
संचय करले परम् धन का
नाम जपत हरि हिय आवे ऐसो प्रेम रस पागे
रे मनवा !
तोहे हरिनाम न मीठा लागे

सब वेदन को सार यही है
साँचो तेरो सिंगार यही है
हरिनाम रटत न जिव्हा अघाये हरि रस हिय उमागे
रे मनवा !
तोहे हरिनाम न मीठा लागे

बहुत जन्म गयो हरि विहीना
नाम रस चाख मूढा मतिहीना
बाँवरी जन्म गमायो विरथा कब हिय चटपटी जागे
रे मनवा !
तोहे हरिनाम न मीठा लागे

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