हरिनाम चटपटी १२

न तोहे लागे हरिनाम चटपटी , न मुख सों  हरिगुण गावै
कबहुँ न सुमिरै दयाल हरि अपनो, जगत माँहिं भरमावै
ऐसो कौन दयाल होय नाथा , तू इत उत भाजी जावै
कैसो मुख दिखाये रह्यो अपनों ,बाँवरी नेक नाँहिं लजावै
अबहुँ मस्तक रख दीजौ गुरु चरणा, काहे तू जन्म गमावै
ऐसो नेह राख हरि गुरु चरणन सों, बिसरे नाँहिं बिसरावै

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