हरि जी कबहुँ नैना भीजै

हरि जी कबहुँ मोरे नैना भीजै
नाम तिहारो न क्षणहुँ बिसरे ऐसो कृपा अबहुँ कीजै
दासी रही अकुलाय क्षण क्षण अपनी सेवा दीजै
चरणन सेवा पावै बाँवरी कबहुँ चरण बिठाय लीजै
नाम रस पिये हिय सरसावै क्षण क्षण नाम रस पीजै
करुणा कीजौ करुणाकर अबहुँ किस विध नाथा रीझे

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