धन की प्रीत२८

धन को बल अति घनो होय जगत की रीत
युगल नाम ही धन होय साँचो लागे ऐसे प्रीत
कागद झूठो सँग न जावै काहे मूढ़ करे सञ्चय
युगल नाम धन ही साँचो हिय न राखो कोऊ संशय
बाँवरी छोड़ सँग जगत को श्यामाश्याम सों प्रीत बढ़े
हिय विराजें युगल आनन्दित ऐसो प्रीत को रँग चढ़े

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