हरिहौं भोगन की गगरी तोरो नाम भजन की लगै चटपटी नाम सौं नेहा जोरो हमरौ बल न कोऊ नाथा भजन कौ भोगन जोर जमावै नाम की डोरी कस दीजौ हरिहौं बाँवरी जगति न धावै पुनि पुनि फेरे चाहे जन्म ...
हरिहौं भोग विषय भ्यै गहरे भजन बिना न कल्मष नासै भक्ति भाव हिय न ठहरे जन्म जन्म कौ भोग मेरौ कबहुँ भोग विषय सब छूटै भर भर नाथा हिय भोग रखाई कबहुँ मेरी गगरी फूटै आपहुँ कछु सुधार ...
हरिहौं हम विष्ठा कौ कीट विषय वासना दिन दिन बाढ़ै रह्यौ ढीठ कौ ढीट स्वांग कियो भक्तन कौ भारी माथे तिलक सजाय हिय भर राखी विष्ठा सगरी बाँवरी कूकरी विष्ठा पाय साँचो नाम न लीन्ही...
हरिहौं अपनो चित्त न दीन्हीं कबहुँ पकरै तू प्रेम पन्थ कौ रहै जगति मन कीन्हीं जग वीथिन फिरै बाँवरी फिरै भोग रस भीनी कारी कीन्हीं सगरी चुनरिया दिन दिन होवै झीनी हा हा नाथा आपह...
हित कौ है खेल प्यारो हित ही खेलावै ! हित कौ ही नाच सब हित ही नचावै !! हित कौ ही प्रेम नेम हित ही बतावै ! हित कौ ही सुख सकल हित सरसावै !! जय जय हित हरिवंश रसना जो गावै ! हिय युगल मणि हित प्र...
हरिहौं बाँवरी भई चालाक बड़ो बड़ो दिमाग लगायौ बाँवरी आपहुँ भई आवाक प्रेम में न कबहुँ होय चालाकी हिय कौ मृदुताई हिय भर राखी कपट जगति कौ प्रेम दियो भुलाई हा हा नाथा कपटी जन होऊँ ...
हरिहौं मोय भरोसो साँचो देयो सुमिरिनि स्वासा स्वास की न करो भरोसो काँचो तुम होवो साँचो साहिब नाथा हर बात तुम्हारी साँची झूठो हम होय नाथा सगरौ न हिय नाम रँग राँची तुम्हरौ ने...
हरिहौं स्वासा कौ माला कीजौ ऐसी सुमिरिनि चाह्वै बाँवरी अरजा मेरी सुन लीजौ ऐसी सुमिरिनि देयो नाथा स्वासा स्वास नाम भरावै देखे न कोऊ ऐसो रखाऊँ हिय नाम रस चाह्वै उर अंतर फेरू...
हरिहौं ऐसी दशा हमारी लिख लिख कागद कारौ भयौ मन पहले कारौ भारी बाँवरी मूक ही रह्यौ अबहुँ इतनो ही बुद्धि बिचारी बहुत कियो ढोंग आडम्बर बाँवरी भई घोर अहंकारी नाम भजन सौं दूर रहै ...
हरिहौं कौन कहै पतितपावन जौ पतितन कौ पावन न कीन्हें कैसो नाम सुहावन तुम भक्तवत्सल मैं भक्त न हरिहौं तुम अधमन तारन तुम दाता दीनानाथ प्रभु हमहुँ जन्म जन्म भिखारन पाथर हिय कब...
हरिहौं कबहुँ बनै भजन की बात हिय कबहुँ लागै भजन चटपटी क्षनहुँ न सकुचात कर की साँची शोभा सुमिरनी बिन पकरै बनै न बात लोक दिखावा करै बाँवरी रहै बिरथा समै गमात साँची पीर देयो हिय...
हरिहौं भोग जगति हिय भाय विषय वासना कौ जड़ गहरी हरिनाम न कबहुँ सुहाय हरिनाम न कबहुँ सुहाय बाँवरी नित नव ढोंग बनाय बाहर भीतर अन्तर कीन्हीं किस विध प्रेम रस पाय जो होतो हिय चातक...
हरिहौं हम प्रेम कौ पन्थ न जाने बुद्धि खोटी जन्म जन्म सौं किये सदा मनमाने भोग पदार्थ लागै नीकै बाँवरी नित नित संचय कीन्हें हरि चरणन सौं प्रेम न उपजै हिय भोग बढ़ै रसभीने विषय भ...
हरिहौं भयौ विषय कौ कीट भोग वासना दिन दिन बाढ़ै रह्यौ ढीट कौ ढीट कान न कीन्हीं सतगुरु की बातां सगरौ दी बिसराई भोग वासना की लगी चटपटी कौन विध बनत बनाई हा हा नाथा भजनहीन फिरूँ बु...
हरिहौं मोटी गाँठ परी विषय वासना की गठरी बाँवरी दिन दिन और भरी कोऊ उपाय न करिहै बाँवरी खोल देवै गाँठ सारी भरत भरत निशिबासर बाढ़ै होवै क्षण क्षण भारी हा हा नाथ खोलो मोरी गठरी त...
हरिहौं तुम साँचो बलवान भोग विष्ठा मद मत्सर घेरी हरिहौं बाँवरी बनै नादान अपनो बल काहे न लगाय कछु मेरौ करौ सुधार भोग विषय मेरौ दिन दिन बाढ़ै मद मत्सर अपार पतितपावन तुम नाम धरा...
हरिहौं हिय पाथर सौं कठोर नाम लिए कबहुँ द्रवित भ्यै भूली साँझ अरु भोर भोग पकावै निशिबासर खावत पीवत समय गमावै हरिनाम की न लगै चटपटी बाँवरी बिरथा जन्म बितावै हिय न साँचो लोभ न...
हरिहौं बाँवरी दुई रूप धरै बाहर स्वांग भगत कौ गाढ़ै बाँवरी भीतर भोग भरै क्षण क्षण बिरथा कीन्हीं बाँवरी न हरिनाम करै बुद्धिहीन बिरथा जन्म रही खोय रहै भव सिन्धु परै नाम भजन की ...
हरिहौं मैं जान्यो सब सार नाम भजन ही धन होय साँचो शेष सकल ब्यौहार जान जान सब बुद्धि लगाई तबहुँ न हरिनाम कमाई जगति कौ धन हिय समावै रही निशिबासर बौराई जानत जानत कछु न समझी बाँव...
हरिहौं हम अधमन सिरमौर नाम भजन की रीति सौं दूरी जगति लागी दौर पुनि पुनि जग वीथिन भाजै हरिनाम न कबहुँ लीन्हीं जन्म जन्म गमाई बिरथा बाँवरी हरिनाम न कीन्हीं अबहुँ विषय नाँहि...