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Showing posts from December, 2018

काजर की कोठरी

हरिहौं हम काजर की कोठरी काली कालस देह सगरी कालस सब हिय भरी कालस सौं हिय कारौ भयो चोरी कर भरे झोरी अपनो कछु नाँहिं पाई नाथा बाँवरी जगति दौरी अंतर बाहर कालस कालस कबहुँ नाम सौं ...

विष्ठा कौ कीट

हरिहौं होऊँ विष्ठा कौ कीट जन्म जन्म सौं विष्ठा ही पाई रह्यौ ढीठ कौ ढीट कबहुँ लालसा जावै हिय सौं भोग विषय लगै खारै कबहुँ बाँवरी बिलपत नाथा बस गौरा गौर पुकारै अबहुँ लगै जगति ब...

आली री

आली री ! कौन कौ कहूँ जिय की बाँवरी बिरहन तडपै निशिबासर पीर न मिटे हिय की खावन पीवन की सुधि भूली असन बसन बिसराई नयनन झरत रहें निशिबासर जब सौं नेहा लगाई पिय पिय एकै रटन लगाई पीर ब...

भोगन की गगरी

हरिहौं भोगन की गगरी तोरो नाम भजन की लगै चटपटी नाम सौं नेहा जोरो हमरौ बल न कोऊ नाथा भजन कौ भोगन जोर जमावै नाम की डोरी कस दीजौ हरिहौं बाँवरी जगति न धावै पुनि पुनि फेरे चाहे जन्म ...

भोग विषय

हरिहौं भोग विषय भ्यै गहरे भजन बिना न कल्मष नासै भक्ति भाव हिय न ठहरे जन्म जन्म कौ भोग मेरौ कबहुँ भोग विषय सब छूटै भर भर नाथा हिय भोग रखाई कबहुँ मेरी गगरी फूटै आपहुँ कछु सुधार ...

हम विष्ठा कौ कीट

हरिहौं हम विष्ठा कौ कीट विषय वासना दिन दिन बाढ़ै रह्यौ ढीठ कौ ढीट स्वांग कियो भक्तन कौ भारी माथे तिलक सजाय हिय भर राखी विष्ठा सगरी बाँवरी कूकरी विष्ठा पाय साँचो नाम न लीन्ही...

प्रीति की रीति

बाँवरी प्रीति की रीति अलबेलौ ज्यों ज्यों बाढ़त आगै पन्थ जेई छूटो सँग सहेलौ बिरह ताप खावै हिय निशदिन न भावै जग मेलौ प्रियतम बिन लगै स्वासा खारी जग जंजाल झमेलौ प्रीति छुड़ावै ...

विरह न साँचो लागा

हरिहौं बिरह न साँचो लागा भोग विषय की पुतरी बाँवरी विषयन मन रहै पागा प्रीत की रीति न जानै बाँवरी राखै काँचो प्रेम कौ धागा कोयल सम नाँहिं वाणी मीठी कटु बोलै ज्यों कारौ कागा हा...

हमरौ हिय इत उत

हमरौ हिय इत उत भाजै नाम भजन सौं दूरी कीन्हीं भोग विषय कौ साजै भोगन कौ ब्यौपार रहै तगरो विषय भोग कै काजै साँचो निर्धन कंगाल बाँवरी हिय न कबहुँ छाजै बिरथा कीन्हीं मानुस देहि प...

अपनो चित्त न दीन्हीं

हरिहौं अपनो चित्त न दीन्हीं कबहुँ पकरै तू प्रेम पन्थ कौ रहै जगति मन कीन्हीं जग वीथिन फिरै बाँवरी फिरै भोग रस भीनी कारी कीन्हीं सगरी चुनरिया दिन दिन होवै झीनी हा हा नाथा आपह...

करो छुटकारा

हरिहौं आपहुँ करौ छुटकारा बुद्धिहीन मतिहीन बाँवरी कबहुँ न नाथ बिचारा कौन मोल होय मानुस देहि मिली चौरासी पाछै खोटी कीन्हीं कमाई सगरी बाँवरी कर्म न कीन्हें आछै भोग लालसा त...

काहे देह दई

हरिहौं बाँवरी काहे देह दई भजनहीन बोझा होय धरती कौ काहे न जग सौं गई बिरथा स्वासा स्वासा कीन्हीं मोल कछु न पाई मानुस देह अमोलक कौ मूढ़ा कोऊ न मोल लगाई बिरथा बिरथा जीवै बाँवरी त...

कोउ बाता

हरिहौं कोऊ विध बनै न बाता जगति भोग रहै रमी बाँवरी भजन न कबहुँ सुहाता खावन पीवन सोवत गयौ सगरौ जीवन मूढ़ा दई गमाई लोभ न कीन्हीं भजन सत्संग कौ भोगन विष्ठा पाई बाँवरी बनी विष्ठा ...

न बनो कठोरा

हरिहौं अबहुँ न बनौ कठोरा पतितपावन तुम नाम रखायो कीजौ साँचो थोरा पतितन कौ न पावन कीन्हो झूठो न नाम बनावो बाँवरी पतित रहै काहे भुलाई नाथा ऐसो न बनत बनावो हमरौ आसा तुमसौं सगरी ...

दया कौ सिन्धु

हरिहौं तुम हो दया कौ सिन्धु बून्द बून्द भरौ मेरी गागर हमरी प्यास होय बिन्दु साँची प्यास न लागी हरिहौं झूठी जगति की लागी नाम अमृत न पीवै बाँवरी पुनि पुनि जगति रहै भागी भोगन ...

हित को खेल

हित कौ है खेल प्यारो हित ही खेलावै ! हित कौ ही नाच सब हित ही नचावै !! हित कौ ही प्रेम नेम हित ही बतावै ! हित कौ ही सुख सकल हित सरसावै !! जय जय हित हरिवंश रसना जो गावै ! हिय युगल मणि हित प्र...

लम्पट गंवार

हरिहौं होऊँ लम्पट ग्वार साँचो धन तुम होवो नाथा बाँवरी दई बिसार जन्म जन्म कौ भूली नाथा मेरो अपनो द्वार जगति द्वार गयी बहुतेरे मिल्यो न कोऊ सुखसार राखो अपनी चौखट नाथा कूकर ब...

बाँवरी भई चालाक

हरिहौं बाँवरी भई चालाक बड़ो बड़ो दिमाग लगायौ बाँवरी आपहुँ भई आवाक प्रेम में न कबहुँ होय चालाकी हिय कौ मृदुताई हिय भर राखी कपट जगति कौ प्रेम दियो भुलाई हा हा नाथा कपटी जन होऊँ ...

साँचो घर

हरिहौं साँचो घर न बैठाई हिय निकुंज नाँहिं कीन्हो अपनो विष्ठा रही फैलाई नित नित भोग जगति के बाढ़ै कीन्हीं विष्ठा ढेरी कहाँ पधराउँ तुमको नाथा हिय माया जगति घनेरी आपहुँ कस कस ...

माया काहे नचाय

हरिहौं माया काहे नचाय होऊँ तौ तुम्हरी वस्तु नाथा बाँवरी दियो भुलाय जेई कारण माया कौ मौको मिले लेय भरमाय हा हा नाथा होऊँ तेरौ जन देरी परै समझ आय अबहुँ पकरौ डोरी नाथा मेरी माय...

बिरथा रसना

हरिहौं बिरथा रसना रखाई जो रसना हरिनाम न गावै कबहुँ न गावै हरि बड़ाई काहे राखी रसना मूढ़े बिरथा जगति यश गावै बढ़ बढ़ गावै पर दोषा हरिनाम न कबहुँ सुहावै हरिहौं कस कस चपत लगावो  बाँ...

पतिता पड़ी द्वारे

हरिहौं पतिता पड़ी द्वारै झूठी साँची बनत रहै जैसे बाँवरी सोई पुकार पुकारै बलहीन बुद्धिहीन होऊँ नाथा रही साँचो नाथ बिसराई हा हा नाथा माया अबहुँ पकरै आपहुँ करौ छुड़ाई जन्म जन...

पतिता पड़ी द्वारे

हरिहौं पतिता पड़ी द्वारै झूठी साँची बनत रहै जैसे बाँवरी सोई पुकार पुकारै बलहीन बुद्धिहीन होऊँ नाथा रही साँचो नाथ बिसराई हा हा नाथा माया अबहुँ पकरै आपहुँ करौ छुड़ाई जन्म जन...

भरोसो साँचो

हरिहौं मोय भरोसो साँचो देयो सुमिरिनि स्वासा स्वास की न करो भरोसो काँचो तुम होवो साँचो साहिब नाथा हर बात तुम्हारी साँची झूठो हम होय नाथा सगरौ न हिय नाम रँग राँची तुम्हरौ ने...

जन तेरौ

हरिहौं मैं जन तेरौ नाथा भूली रह्यौ तोहे जन्म जन्म सौं जगति फोरै माथा अबहुँ लजावत साँचो हरिहौं देख हिय कल्मष सारे कौन जगह तुम्हैं पधराऊं नाथा हिय भरै विषय रस भारे हरिनाम सौ...

सुन लीजो अरजा

हरिहौं सुन लीजौ मोरी अरजा काहे जगति दौरे बाँवरी राखै तुमसौं साँची गरजा तुम ही साँची ठौर हमारी जन्म जन्म बिसराई अबहुँ बिलपत रहै बाँवरी नाथा कौन भाँति होय छुड़ाई जगति कौ भोग ...

कौन भाँति दसा सुधरै

हरिहौं कौन भाँति दसा सुधरै आपहुँ गमावै स्वासा स्वास बाँवरी हरिनाम कौ मोती बिखरै सद्गुरु दीन्हीं हरिनाम सुमिरिनि एकै एकै नाम जोरै मूढ़ा अधम न करै संभारी एकै एकै मनका फोरै ...

स्वासा कौ माला

हरिहौं स्वासा कौ माला कीजौ ऐसी सुमिरिनि चाह्वै बाँवरी अरजा मेरी सुन लीजौ ऐसी सुमिरिनि देयो नाथा स्वासा स्वास नाम भरावै देखे न कोऊ ऐसो रखाऊँ हिय नाम रस चाह्वै उर अंतर फेरू...

तुम नाँहिं झूठे हम झूठे

हरिहौं तुम नाँहिं झूठे हम झूठे भजनहीना सुभाव हमारौ नाथा तबहुँ तुमसे रूठे झूठो साँचो कहे निशिबासर बाँवरी हिय भरयौ झूठ कौन विधि दसा सुधरै हमारी रह्यौ ठूँठ कौ ठूँठ हा हा नाथ...

सुधि लीजो निज जन की

हरिहौं सुध लीजो निज जन की भजनहीना फिरै बाँवरी दिन दिन सुनो कछु निर्धन की तुम होवो साँचो नाथा जी हमरै हमहुँ काहे होय निर्धन काहे मन इत उत भाजै हरिहौं आपहुँ करौ जतन निर्बल मति...

तुम न दीजौ छोरी

हरिहौं तुम न दीजौ छोरि पकरौ नाथा मूढ़ पतित बाँवरी  जावै जगति दौरि भोग जगति कौ मीठो लागै नाम भजन लगै खारी बुद्धिहीन मतिहीन मूढ़ा बाँवरी तबहुँ रहै जन्म बिगारी आपहुँ पकरौ नाम ...

बिगरी दशा

हरिहौं बिगरी दसा हमारी खावत पीवत सोवत रहै मग्न बाँवरी पैर पसारी नाम भजन कबहुँ सुधि न लेवै आवै निद्रा गहरी जगति कान दिये राखी मूढ़े भजन कथा कौ बहरी पुनि पुनि भव निद्रा परै बाँ...

ऐसी दशा

हरिहौं ऐसी दशा हमारी लिख लिख कागद कारौ भयौ मन पहले कारौ भारी बाँवरी मूक ही रह्यौ अबहुँ इतनो ही बुद्धि बिचारी बहुत कियो ढोंग आडम्बर बाँवरी भई घोर अहंकारी नाम भजन सौं दूर रहै ...

भोग छुटै

हरिहौं कौन भाँति भोग छूटै जड़बुद्धि अति पामर जीवा किस विध प्रेम धन लूटै हमरो कोऊ बल न नाथा अति मोटी भोगन जंजीर बाँवरी बिलपत रहै बंधत ही सरसावै हिय जब पीर काटो नाथा क्लेश सब ह...

विष्ठा की ढेरी

हरिहौं हम विष्ठा की ढेरी भजनहीन पसु फिरै बाँवरी जगति ममता बहुतेरी पसु ह्वै तो चाम भी राखै तेरौ चाम न कीट कोऊ पाय राख कौ ढेर बनेगी मूढ़े कबहुँ हरिभजन चित्त न लाय कौन भाँति तेर...

कौन कहे पतितपावन

हरिहौं कौन कहै पतितपावन जौ पतितन कौ पावन न कीन्हें कैसो नाम सुहावन तुम भक्तवत्सल मैं भक्त न हरिहौं तुम अधमन तारन तुम दाता दीनानाथ प्रभु हमहुँ जन्म जन्म भिखारन पाथर हिय कब...

भजन की बात

हरिहौं कबहुँ बनै भजन की बात हिय कबहुँ लागै भजन चटपटी क्षनहुँ न सकुचात कर की साँची शोभा सुमिरनी बिन पकरै बनै न बात लोक दिखावा करै बाँवरी रहै बिरथा समै गमात साँची पीर देयो हिय...

भोग जगति

हरिहौं भोग जगति हिय भाय विषय वासना कौ जड़ गहरी हरिनाम न कबहुँ सुहाय हरिनाम न कबहुँ सुहाय बाँवरी नित नव ढोंग बनाय बाहर भीतर अन्तर कीन्हीं किस विध प्रेम रस पाय जो होतो हिय चातक...

प्रेम पंथ न जानी

हरिहौं हम प्रेम कौ पन्थ न जाने बुद्धि खोटी जन्म जन्म सौं किये सदा मनमाने भोग पदार्थ लागै नीकै बाँवरी नित नित संचय कीन्हें हरि चरणन सौं प्रेम न उपजै हिय भोग बढ़ै रसभीने विषय भ...

विषय कौ कीट

हरिहौं भयौ विषय कौ कीट भोग वासना दिन दिन बाढ़ै रह्यौ ढीट कौ ढीट कान न कीन्हीं सतगुरु की बातां सगरौ दी बिसराई भोग वासना की लगी चटपटी कौन विध बनत बनाई हा हा नाथा भजनहीन फिरूँ बु...

मोटी गाँठ

हरिहौं मोटी गाँठ परी विषय वासना की गठरी बाँवरी दिन दिन और भरी कोऊ उपाय न करिहै बाँवरी खोल देवै गाँठ सारी भरत भरत निशिबासर बाढ़ै होवै क्षण क्षण भारी हा हा नाथ खोलो मोरी गठरी त...

तुम साँचो बलवान

हरिहौं तुम साँचो बलवान भोग विष्ठा मद मत्सर घेरी हरिहौं बाँवरी बनै नादान अपनो बल काहे न लगाय कछु मेरौ करौ सुधार भोग विषय मेरौ दिन दिन बाढ़ै मद मत्सर अपार पतितपावन तुम नाम धरा...

हिय पाथर

हरिहौं हिय पाथर सौं कठोर नाम लिए कबहुँ द्रवित भ्यै भूली साँझ अरु भोर भोग पकावै निशिबासर खावत पीवत समय गमावै हरिनाम की न लगै चटपटी बाँवरी बिरथा जन्म बितावै हिय न साँचो लोभ न...

हँस बने न कागा

हरिहौं हँस बनै नाँहिं कागा हँसा मोती चुग चुग राखै तेरौ हिय भोग विषय पागा हँसा पकरै मोती हरिनाम कौ बिरथा नाँहिं सुहावै बाँवरी तू भई कागा कारी क्षण क्षण विष्ठा पावै कागा भयौ ...

हम प्रपन्च कौ ढोल

हरिहौं हम प्रपन्च कौ ढोल पीट पीट बजावै निशिदिन खुलत खुले न पोल बाढ़त ढोंग प्रपन्च निशिबासर क्षण क्षण होवै गाढ़ै हा हा नाथा अबहुँ अकुलाऊँ भव ताप हिय बाढ़ै दग्ध करै हिय भव तृष्ण...

बाँवरी दुई रूप

हरिहौं बाँवरी दुई रूप धरै बाहर स्वांग भगत कौ गाढ़ै बाँवरी भीतर भोग भरै क्षण क्षण बिरथा कीन्हीं बाँवरी न हरिनाम करै बुद्धिहीन बिरथा जन्म रही खोय रहै भव सिन्धु परै नाम भजन की ...

हिय दीनता नहीं

हरिहौं हिय दीनता नाँहिं बाँवरी फिरै जगति बौराई भरै अहंकार उर माँहिं हिय अहंकार रख फिरै फूली मो सम कौन बड़भागी सुमिरिनि न राखै कर अपनो हिय न भयौ बैरागी भोग विषय की लालसा गाढ़ी ...

मैं जान्यो सब सार

हरिहौं मैं जान्यो सब सार नाम भजन ही धन होय साँचो शेष सकल ब्यौहार जान जान सब बुद्धि लगाई तबहुँ न हरिनाम कमाई जगति कौ धन हिय समावै रही निशिबासर बौराई जानत जानत कछु न समझी बाँव...

निर्मल मन न राखी

हरिहौं निर्मल मन न राखी भजनभाव न रुचै बाँवरी विष्ठा निशिदिन चाखी कबहुँ सपनेहुँ जागत हिय नाम भजन न सुहावै कौन भाँति होय भोग छुटकारे बाँवरी सोवत समय गमावै सौवन जागन खावत पी...

नेह न साँचो

हरिहौं तुमसौं नेह न साँचो जगति फिरै हिय मदमाती धन सहेजयो काँचो काँची देहि काँची ममता काँचे जगति सौं जोरि साँचो तुम साँचो नाम तिहारो रही जगवीथिन दौरि हा हा नाथा ढोंग कीन्ह...

अधमन शिरमौर

हरिहौं हम अधमन सिरमौर नाम भजन की रीति सौं दूरी जगति लागी दौर पुनि पुनि जग वीथिन भाजै हरिनाम न कबहुँ लीन्हीं जन्म जन्म गमाई बिरथा बाँवरी हरिनाम न कीन्हीं अबहुँ विषय नाँहि...

नेह न साँचो

हरिहौं तुमसौं नेह न साँचो जगति फिरै हिय मदमाती धन सहेजयो काँचो काँची देहि काँची ममता काँचे जगति सौं जोरि साँचो तुम साँचो नाम तिहारो रही जगवीथिन दौरि हा हा नाथा ढोंग कीन्...

अधम दुरि राखो

हरिहौं अधम  राखो दुरि करि भजनहीना सुभाव बाँवरी जग वीथिन दौरि भजन चटपटी हिय न कछु होय जगति बौरि काहे राखी मटुकी देहि की हरिहौं देयो फोरि कबहुँ नामरस हिय न उमगै पिय घूँट भरि ...