फिर से

फिर से मैं गुम हूँ वही दरिया का किनारा है
आज तन्हाइयों ने फिर से मुझे पुकारा है

फिर से दर्द ओ गम की लहरें आया करती हैं
तेरी यादें ही मुझे कितना रुलाया करती हैं
आती जाती हर लहर में तुम्हें निहारा है
फिर से मैं गुम हूँ........

फिर से मेरी कलम तेरी गज़लें गाने लगी
तेरी बातें सुनकर धड़कनें गुनगुनाने लगीं
जाने बेताबी का दौर आया फिर दुबारा है
फिर से मैं गुम हूँ .......

काश अब धड़कनें मेरी सब मेरी खो जाएँ
सब तम्मनाएँ सिमट यूँ कर एक हो जाएं
कोई दर्द आज फिर से दिल मे उतारा है
फिर से मैं गुम हूँ .......

तेरे बगैर मेरा जीना अब तो मुश्किल हुआ
मेरे चैन और सुकून का तू ही कातिल हुआ
तेरे बगैर पल भर भी न मेरा गुज़ारा है
फिर से मैं गुम हूँ वही दरिया का किनारा है
आज तन्हाइयों ने फिर से मुझे पुकारा है

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