अहो मैं पूर्ण सद्गुरु पाया ४५
अहो मैं पूरण सद्गुरु पाया
शरण राख्यो सद्गुरु मेरो अपनी मुख ते नाम जपाया
जगत के विषय बन्धन मेरो काटे मुख पर हरि हरि आया
भटक रही थी मेरी नैया सद्गुरु आप ही पार लगाया
चंचल मन गुरु चरणी लगा जो था माया ने भरमाया
हरि ने कृपा कीन्हीं अतिशय भारी सद्गुरु सों मिलवाया
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