नाथ मोहै हरि नाम रस दीजौ ४२

नाथ मोहे हरि नाम रस दीजौ
पाप त्रिताप सकल मेरो नासे कृपा कोर अब कीजौ

गौर निताई नाम रटे जिव्हा जितनी स्वासा आवै
तुम्हरी शरण पड़े जो नाथा माया कित भरमावै
यही अरजोई करे बाँवरी नाथ शरण रख लीजौ
नाथ मोहे हरि नाम रस दीजौ

जग जंजाल निकालो नाथा हरि प्रेम हिय आवै
नाम भजन की भिक्षा दीजौ और कछु न बाँवरी चाह्वै
गौर निताई नाम धन मेरो धनवान मोहै अब कीजौ
नाथ मोहे हरि नाम रस दीजौ

निज जन की कछु सेवा दीजौ मिटे मेरो अधमाई
चरणन धूर बनाये राखो चाहूँ न मान बड़ाई
कोऊ नेम विधि न जाने बाँवरी किस विध साहिब रीझो
नाथ मोहे हरि नाम रस दीजौ

हरि नाम को व्यसन लगावो षड रस मोहे न भावै
नाम रस ऐसो भिगोये राखो बिन नाम न स्वासा आवै
भिक्षा पुनि पुनि मांगें बाँवरी देर न अबहुँ कीजौ
नाथ मोहे हरि नाम रस दीजौ
पाप त्रिताप सकल मेरो नासै कृपा कोर अब कीजौ

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