बाँवरी को सच ३७
बाँवरी तू बाँवरी रही करत रही सदा अपने जिय की
जगत माँहि झूठो रस लोभे बात भूल रह्यो पिय की
कूकर सम विष्ठा माँहिं लौटत भजन बात लगे फीकी
हरिनाम हरिभजन बिन मूढ़े बनत नाँहिं रहनी नीकी
कबहुँ न करे सँगत साधुन की न हरि वार्ता सीखी
पुनि पुनि रसलोभ जगत माँहिं जीवै तू पसु सरीखी
Comments
Post a Comment