हरि का सिमरण ३३

क्यों गवावे मानुष जन्म अनमोल
हरि का सिमरण करले मनवा
व्यर्थ तराज़ू में मत तोल
हरि का सिमरण करले मनवा

बीत गयी तेरी सारी उमरिया
इक पल हरि ना ध्याया
जन्म बिताया विषय चिंतन में
मुख पे हरि ना आया
बीत गया हीरा जन्म अनमोल
हरि का सिमरण करले मनवा
क्यों गवावे........

पल पल तेरा घर है बुलाये
कौन घड़ी जाने बुलावा आये
अब भी फसा रहा झंझट में
हीरे जैसा जन्म काहे गवावे
मुख से हरि हरि तू बोल
हरि का सिमरण करले मनवा
क्यों गवावे ........

समय का नाग डसेगा तुझको
तब तेरा होगा वापिस जाना
इस घर में मेहमान कुछ पल का
आखिर ये है तेरा देश बेगाना
छोड़ सब व्यर्थ कलोल
हरि का सिमरण करले मनवा
क्यों गवावे ........

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून