चाह होवै ५३
मोसों अधम कौन होवै नाथा हरि प्रेम की चाह होवै
तुम्हरी कृपा होय अधमन पर तबहुँ कछु निबाह होवै
तुम्हरी शरण बिन भव डालूँ साँचो न कोऊ राह होवै
नाम भजन बिन इत उत डोलूँ हिय भारी दाह होवै
ऐसो कीजौ जी प्रेम रँगाई कल्मष सबहुँ स्वाह होवै
विरथा छूटे चाह हिय सों हरिनाम रस अथाह होवै
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