गम की इंतहा

कभी भी मेरे इस गम की इन्तहा न हो
तेरा ख्याल मेरे दिल से कभी जुदा न हो

कभी इन आँखों की नमी कम न होने पाए
चीख बन भीतर ही रहे बस हम न रोने पाएँ
कभी यह दर्द खत्म होने की दुआ न हो
कभी भी मेरे इस गम ......

जाने इतने अल्फ़ाज़ फिर कहाँ से लौट आए
किस्से तेरी वफ़ा के भूलते नहीं हैं भुलाए
यूँ ही सुलगते रहें हम पर कोई निशां न हो
कभी भी मेरे इस गम .......

क्यों मेरा दिल अब सम्भाले से सम्भलता नहीं
तेरा ख्याल क्यों इस से अब निकलता नहीं
या मुझको ऐसे डुबो जाओ कि मेरा पता न हो
कभी भी मेरे इस गम की इन्तहा न हो
तेरा ख्याल मेरे दिल से कभी जुदा न हो

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