तन्हाई

आज फिर खुद को तनहा पाया है
अब मेरे साथ फ़क़त मेरा साया है

फिर से याद आई भूली बिसरी बातें
वो हसीन दिन वो सब दर्द भरी रातें
आज आँखों ने जाने क्या बरसाया है
आज फिर खुद......

ये अकेलापन कभी कभी सुहाना लगता है
बीती बातों को भूलने में ज़माना लगता है
कोई पुराना से दर्द आज फिर गहराया है
आज फिर खुद.......

कभी मेरी कलम लिखती कभी गाती है
कभी हँसती है कभी अश्कों को बरसाती है
जाने क्यों हमनें खुद का पता न पाया है
आज फिर खुद......

काश यह दर्द मुझे थोड़ा खामोश करे
दर्द का ही हो नशा थोड़ा मदहोश करे
क्यों हवाओं ने फिर कोई ज़ख्म सहलाया है
आज फिर खुद को तनहा पाया है
अब मेरे साथ फ़क़त मेरा साया है

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