मो सम कौन पतित ४७

मो सम कौन पतित होय नाथा मैं अधमन को सिरमौर
कूकर रहूँ तिहारी चौखट की नाथा और न मेरी ठौर
जैसो पँछी होय कोऊ जहाज को कितनी राखे दौर
हिय माँहिं राखूँ कपट भारी भीतर बाहर रह्यो और
पुनि पुनि उड़ उड़ जावै इत उत पावै नाँहिं कोऊ छोर
बाँवरी गल सुतरी डार दीजौ नाम की नाथा सुनो निहोर

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