लोभे विकार न जावे ३४
साहिब मेरो लोभ विकार न जावै
भावै मोहे जगत को षडरस हरिनाम न सुहावै
जन्मन की जड़ता होवै ऐसो नित्य विकार बढ़ावै
जितनो चाखो उतनी बाढ़े पिपासा बढ़ती जावै
ऐसो लोभे होवै भजन को तबहुँ भवसागर छुट पावै
कृपा कीजौ अधमन पर ऐसो जिव्हा हरिनाम लोभी होय जावै
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