आसान नहीं

अपने अश्कों को लफ़्ज़ों में लाना आसान नहीं
सांस रहती तक तुझको भुलाना आसान नहीं

अब यह अश्क़ ही तो बन गए दौलत मेरी
तुम ही तुम सिर्फ रह गए हो चाहत मेरी
ऐसी चाहत में और चाहत मिलाना आसान नहीं
अपने अश्कों को .......

सच तो यह है तेरी मोहबत ने जीना सिखाया मुझे
रूह से बहते हुए अश्कों को पीना सिखाया मुझे
रूह के हर जख्म को गुनगुनाना आसान नहीं
अपने अश्कों को ........

जाने यह कलम क्यों दर्द ही दर्द लिखती है
रहती है अश्क़ बहाती खोई सी दिखती है
तेरे इश्क़ की मदहोशी भुलाना आसान नहीं
अपने अश्कों को .......

खामोशी में भी क्यों अरमान अब मचलते हैं
सुलगते से रहते हैं क्यों भीतर ही ये जलते हैं
इस इश्क़ की लगी को बुझाना आसान नहीं
अपने अश्कों को लफ़्ज़ों में लाना आसान नहीं
सांस रहती तक तुझको भुलाना आसान नहीं

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