रे मन गोबिंद४८

रे मन गोबिंद काहे न भजिहे
नित नित सद्गुरु शरण मे रहिये विषय वासना तजिहे
नाम अमोलक दीन्हा सद्गुरु भजत भजत न रजिहे
नाम ही रहे स्वासा स्वासा ऐसो नाम रँग माँहिं सजिहे

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