बात और है

कहने की बात और है होने की बात और है
हम खुद को ही न सुन सके रूह तलक ऐसा शोर है

लिखा बड़ा कहा बड़ा तेरे इश्क़ का फलसफ़ा
ख़ाली थे ख़ाली ही रहे न कुछ भी भीतर गया
जो हम को बांध लें कभी बन पाई न वो डोर है
कहने की बात ......

बस आग सी है जल रही दिल अश्कों से है नम हुआ
कभी लहर सी उठी कोई कभी मेरा वजूद गुम हुआ
अब खुद से ही डरते हैं हम जाने यह कैसा दौर है
कहने की बात .......

तन्हाई में जीना ही अब कुबूल हमने कर लिया
अश्क़ हम चाहते हैं दर्द से दामन भर लिया
अब कोई परवाह न रही चलने का रुख किस ओर है
कहने की बात और है होने की बात और है
हम खुद को ही न सुन सकें रूह तलक ऐसा शोर है

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