मो कंटक को ४९
मो कंटक को निज संग रखीहो बिन कंटक पुष्प न सुहावै
होऊँ कीच मैं अधम अति पामर अरविंद कीच माँहिं सुहावै
निर्धन होऊँ अति नाम विहीना उर अंतर की मैल न जावै
सद्गुरु बाता ध्यान न देऊं किस विध मेरो जगत छुट जावै
चरण किंकरी कीजौ मोहे बाँवरी कित भी ठौर न पावै
मेरो काम बिगारन नाथा बिगरा बनाना तोहे ही आवै
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