बारिश

मुझको मुझसे चुराने की आज फिर साज़िश हुई
भीग गए तेरे इश्क़ में यूँ आज ऐसी बारिश हुई

कुछ पल तुम रहे अब क्यों हूँ मैं यह दर्द है
जाने क्यों पल पल बदलने की आजमाइश हुई

तुम चुराते हो धड़कन यह मुझे इल्म न था
फिर से चोरी होने की अब मुझे ख्वाहिश हुई

कभी ऐसे तुम आओ कि तुम ही तुम रहो बाक़ी
तुझमें फनाह होने की बस मेरी गुज़ारिश हुई

कलम भी तेरी लफ्ज़ भी तेरे मेरा वजूद न रहे
मुझको अब मेरे होने से जाने क्यों रंजिश हुई

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