हा हा नाथ४४

करुणामयी अबहुँ करुणा कीजौ करुणामयी नाम धराय रहे
प्रेम अंकुर शुष्क हिय माँहिं फूटै प्रेम अवतार बन आय रहे
दाह मेटो मेरो उर अन्तर की नाथा मोहे विषय विकार जलाय रहे
पतितपावन रूप धर आयो पात्र कुपात्र को भेद मिटाय रहे
जन्मन की जड़ता तुरन्त कट जावै ऐसो प्रेम रस बरसाय रहे
मोसों अधम कौन होय नाथा बिरथा जो जन्म गमाय रहे

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