भजन की बात ३८

भजन की कोऊ बने न बात
अति कषाय होय हिय मेरो नाथा हरिरस बिन न अकुलात
लौटत फिरूँ पुनि पुनि जग बीथन नामरस न  मोहे सुहात
बाँवरी कबहुँ नाम जपे री बैठी रहे तू बहु जन्म गमात
नेक करुणा दृष्टि निहारो नाथा मैं अपनी ओर देखत सकुचात
मो सम पतित को बल न होय कोऊ आपहुँ पकरो मोय बलात

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